आध्यात्मिक चिंतन अनिवार्य है जीवन के लिए
जो लोग अधयात्मि चिंतन से विमुख होकर केवल लोकोपकारी कार्य में लगे रहते है,वे अपनी ही सफलता पर अथवा सद्गुणों पर मोहित हो जाते है। वे अपने आपको लोक सेवक के रूप में देखने लगते है। ऐसी अवस्था में वे आशा करते है कि सब लोग उनके कार्यो की प्रसंशा करे,उनका कहा माने। उनका बढ़ा हुआ अभिमान उन्हें अनेक लोगो का शत्रु बना देता है। इससे उनकी लोक सेवा उन्हें वास्तविक लोक सेवक न बनाकर लोक विनाश का रूप धारण कर लेती है।
आधायत्मिक चिंतन के बिना मनुष्य में विनीत भाव नहीं आता और न उनसे अपने आपको सुधारने की क्षमता रह जाती है। वह भूलो पर भूल करता चला जाता है और इस प्रकार अपने जीवन को विफल बना देता है।
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